(अगले महीने लोकसभा चुनाव की तारीखों के एलान से पहले सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को बड़ा झटका दिया है। 15 फरवरी को अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को रद कर दिया । कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया । सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है, सरकार से पूछना जनता का कर्तव्य है। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों में खलबली मच गई है, क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों के चंदे का बड़ा सोर्स था। चाहे लोकसभा या विधानसभा चुनाव हो पॉलिटिकल पार्टियों को धन की जरूरत होती है। खासकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए ये बड़ा झटका है, क्योंकि इसी पार्टी को पिछले आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा डोनेशन मिला था। इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों के चंदे का बड़ा सोर्स था । इस स्कीम को 2018 में लाया गया लेकिन अब इसे निरस्त कर दिया गया है।) अगले महीने मार्च में केंद्रीय निर्वाचन आयोग लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान करने की तैयारी में जुटा हुआ है। आम चुनाव से पहले देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को बड़ा झटका दिया है। 15 फरवरी को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से मिलने वाले चुनावी चंदे पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के चुनावी बॉन्ड योजना को रद करने के बाद देश की विभिन्न राजनीतिक दलों में खलबली मच गई है। क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों के चंदे का बड़ा सोर्स था। चाहे लोकसभा या विधानसभा चुनाव हो पॉलिटिकल पार्टियों को धन की जरूरत होती है। खासकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए ये बड़ा झटका है, क्योंकि बीजेपी को पिछले आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा डोनेशन मिला था। लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल चुनावी चंदा लेने के लिए दूसरे तरीकों की तलाश में जुट गए हैं। 5 जजों की पीठ ने चुनावी बॉन्ड को ‘असंवैधानिक’ बताया । चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली इस बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल थे। बेंच ने कहा, लोगों को ये जानने का अधिकार है कि राजनीतिक पार्टियों का पैसा कहां से आता है और कहां जाता है। गुरुवार को अहम फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सरकार से पूछना जनता का कर्तव्य है।केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं। सीजेआई ने कहा कि राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया में प्रासंगिक राजनीतिक इकाई हैं। मतदान का सही विकल्प अपनाने के लिए राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है। आर्थिक असमानता राजनीतिक व्यस्तताओं के विभिन्न स्तरों को जन्म देती है। इतना ही नहीं उच्चतम अदालत ने एसबीआई से 6 मार्च तक चुनावी बॉन्ड की जानकारी देने के लिए कहा है और चुनाव आयोग को इस जानकारी को 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने के निर्देश दिए हैं। वहीं केंद्र सरकार ने इस योजना का बचाव करते हुए कहा कि धन का उपयोग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। सरकार ने आगे तर्क दिया कि दानदाताओं की पहचान गोपनीय रखना जरूरी है, ताकि उन्हें राजनीतिक दलों से किसी प्रतिशोध का सामना न करना पड़े। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि योजना का फोकस “गुमनाम” सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि ‘गोपनीयता’ सुनिश्चित करना है। निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने के शीर्ष अदालत के 2019 के फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने तर्क दिया कि दाताओं को निजता का अधिकार है जब तक कि जानकारी वास्तविक सार्वजनिक हित का स्रोत न हो, इस मामले में लोग अदालत का रुख कर सकते हैं। सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को उन तरीकों का विस्तृत विवरण भी दिया था कि संसद, सरकार और चुनाव आयोग ने पिछले कुछ वर्षों में राजनीति में काले धन के प्रसार को रोकने का प्रयास किया है। उन्होंने दावा किया कि चुनावी बांड योजना विभिन्न प्रकार की योजनाओं, संशोधनों और नीतियों के साथ ‘प्रयोग’ करने के बाद पेश की गई थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि योजना में कोई खामियां थीं, तो इसे रद करने के लिए केवल इतना ही पर्याप्त कारण नहीं होगा। गौरतलब है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संवैधानिक पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 15 फरवरी को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी चंदे पर रोक लगा दी।
मोदी सरकार ने साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू की थी–
साल 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की थी। इसे 29 जनवरी 2018 से कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था। तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम चुनावी चंदे में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है। हालांकि, 2019 में ही इसकी वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिल गई थी। तीन याचिकाकर्ताओं ने इस स्कीम के खिलाफ याचिका दायर की थी। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई। बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था। इस पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी। चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई को फिर से स्थगित कर दिया गया। इसके बाद से अभी तक इस मामले को कोई सुनवाई नहीं हुई है।
वहीं, केंद्र सरकार ने इसका बचाव करते हुए कहा था कि इससे सिर्फ वैध धन ही राजनीतिक पार्टियों को मिल रहा है। साथ ही सरकार ने गोपनीयता पर दलील दी थी कि डोनर की पहचान छिपाने का मकसद उन्हें राजनीतिक पार्टियों के प्रतिशोध से बचाना है। इस योजना के तहत भारत का कोई भी नागरिक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के ब्रांच से इसे खरीद सकता था। इसके साथ ही कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है। इसके तहत, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 29 ब्रांचों से अलग-अलग रकम के बॉन्ड जारी किए जाते हैं। इनकी रकम एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक होती है। इसे कोई भी खरीद सकता है और अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकता है। वित्त मंत्रालय की आर्थिक मामलों के विभाग की तरफ से जारी नोटिस के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड के जरिये कितनी भी रकम डोनेट की जा सकती है, उसे लेकर कोई लिमिट नहीं लगाई गई है। हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसके आप अपनी पूरी मनमर्जी से पैसे नहीं दान दे सकते। इसके जरिये किए जाने वाले डोनेशन में बिलकुल भी टैक्स नहीं लगता है, यानी यह बिलकुल टैक्स फ्री होता है। योजना के तहत, इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में जारी होते हैं। हालांकि, इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को दिया जा सकता था, जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट मिले हों। इलेक्टोरल बॉन्ड रद हो जाने के बाद पार्टियों के पास और भी रास्ते हैं जहां से वो कमाई कर सकतीं हैं। इनमें डोनेशन, क्राउड फंडिंग और मेंबरशिप से आने वाली रकम शामिल है। इसके अलावा कॉर्पोरेट डोनेशन से भी पार्टियों की कमाई होती है। इसमें बड़े कारोबारी पार्टियों को डोनेशन देते हैं।
साल 2022-23 में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से भाजपा और कांग्रेस को सबसे ज्यादा मिला धन–
भारतीय चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक भाजपा को 2022-23 में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से लगभग 1300 करोड़ रुपये मिले। यह राशि इसी अवधि में इस माध्यम (चुनावी बॉन्ड) से विपक्षी दल कांग्रेस को प्राप्त धनराशि से सात गुना अधिक है। निर्वाचन आयोग को सौंपी गई पार्टी की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में भाजपा को कुल 2120 करोड़ रुपये मिले जिसमें से 61 प्रतिशत चुनावी बॉन्ड से प्राप्त हुए। वित्त वर्ष 2021-22 में पार्टी को कुल 1775 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त हुआ था। वर्ष 2022-23 में पार्टी की कुल आय 2360.8 करोड़ रुपये रही, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 1917 करोड़ रुपये थी। दूसरी ओर, कांग्रेस को चुनावी बॉन्ड के जरिये 171 करोड़ रुपये की आय हुई, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 236 करोड़ रुपये से कम थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो डोनेशन बॉन्ड के रूप में पार्टियों को सौंपे जा चुके हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें अभी कैश में नहीं बदलवाया है उसे बैंक को वापस कर दिए जाएं और वह पैसा फिर से उन लोगों के खाते में डाल दिया जाए, जिन्होंने रकम दान दी थी। वहीं शुक्रवार सुबह कांग्रेस पार्टी और यूथ कांग्रेस पार्टी के कई बैंक अकाउंट्स को फ्रीज कर दिया गया। जिसे लेकर कांग्रेस कोषाध्यक्ष अजय माकन ने केंद्र सरकार पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान गंभीर आरोप लगाए थे। अजय माकन ने बैंक खातों को फ्रीज करने के फैसले को “लोकतंत्र की प्रक्रिया पर खतरनाक हमला” बताया। यही नहीं, इनकम टैक्स विभाग ने पार्टी से 210 करोड़ रुपये भी मांगे थे। कांग्रेस का कहना है कि ये फैसला राजनीति से प्रेरित है और चुनाव की तैयारी में बाधा डालने के लिए किया गया है। शुक्रवार दोपहर को कांग्रेस के अकाउंट फ्रीज होने के मामले पर आज इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल में सुनवाई हुई। कोर्ट ने सुनवाई के बाद कांग्रेस को आंतरिक राहत मिली और अब पार्टी अकाउंट का इस्तेमाल कर सकेगी। वहीं, केंद्र सरकार पर हमला करते हुए राहुल गांधी ने ट्वीट किया। जिसमें उन्होंने कहा डरो मत मोदी जी, कांग्रेस धन की ताकत का नहीं, जन की ताकत का नाम है। हम तानाशाही के सामने न कभी झुके हैं, न झुकेंगे।