आज 9 जून को नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। भले ही केंद्र में भाजपा अपने सहयोगी दलों एनडीए के साथ सरकार बनाने जा रही है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मोदी अपने पहले और दूसरे टर्म के जैसी सरकार नहीं चला पाएंगे। साल 2014 और 2019 में भाजपा को मिले पूर्ण बहुमत और प्रचंड जीत के बाद पीएम मोदी के पास सत्ता की कमान पूरी तरह से पकड़ में थी। लेकिन इस बार पीएम मोदी के लिए सियासी परिस्थितियां बदली हुई हैं। अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रालय का बंटवारा अपने हिसाब से किया था। लेकिन इस बार पीएम मोदी के चेहरे पर से सहयोगी दलों (एनडीए) का दबाव साफ रूप से दिखाई दे रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और चंद्रबाबू ने फिलहाल साफ कर दिया है कि वो मोदी के साथ हैं। इस बात को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है कि मोदी के बगल में पांच साल बैठे रहने की गारंटी की वो क्या कीमत वसूलेंगे, कौन-कौन से मंत्रालयों पर अपना दावा ठोकेंगे। नीतीश कुमार पिछले एक दशक में कई बार एनडीए और राजद के साथ आते-जाते रहे हैं। नीतीश को सियासत की दुनिया में भरोसेमंद नेता नहीं कहा जा सकता है। ऐसे ही आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नायडू भी सियासी दांव-पेंच में माहिर हैं।
रविवार, 9 जून साल 2024 है। नरेंद्र मोदी इतिहास रचते हुए प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। यह शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन में होगा। साल 2014 और 19 में भाजपा को मिले पूर्ण बहुमत और प्रचंड जीत के बाद पीएम मोदी के पास सत्ता की कमान पूरी तरह से पकड़ में थी। लेकिन इस बार पीएम मोदी के लिए सियासी परिस्थितियां बदली हुई हैं। अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रालय का बंटवारा अपने हिसाब से किया था। लेकिन इस बार नरेंद्र मोदी के चेहरे पर से सहयोगी दलों (एनडीए) का दबाव साफ रूप से दिखाई दे रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भाजपा को इस बार पूर्ण बहुमत न मिलना है। केंद्र में सरकार के गठन होने से पहले ही भाजपा के कई साथी दलों ने अपनी कीमत बढ़ा दी है। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद राजनीति में पिछली बार की अपेक्षा इस बार कई चीजें बदल गई हैं । चुनाव नतीजों के बाद पीएम मोदी सरकार में शामिल हो रहे तेलुगु देशम पार्टी, जेडीयू समेत तमाम छोटे दलों को साथ लेकर चलने का दम जरूर भर रहे हैं लेकिन टूट और शंकाओं के बीच मजबूती के साथ आगे बढ़ना आसान नहीं होगा। भले ही केंद्र में भारतीय जनता पार्टी तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले और दूसरे टर्म के जैसी सरकार नहीं चला पाएंगे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और चंद्रबाबू ने फिलहाल साफ कर दिया है कि वो मोदी के साथ हैं। इस बात को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है कि मोदी के बगल में पांच साल बैठे रहने की गारंटी की वो क्या कीमत वसूलेंगे, कौन-कौन से मंत्रालयों पर अपना दावा ठोकेंगे। नीतीश कुमार पिछले एक दशक में कई बार एनडीए और राजद के साथ आते-जाते रहे हैं। नीतीश को सियासत की दुनिया में भरोसेमंद नेता नहीं कहा जा सकता है। ऐसे ही आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नायडू भी सियासी दांव-पेंच में माहिर हैं। साल 1999 में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार को बाहर से समर्थन तो दिया था लेकिन 29 सांसद होने के बावजूद उन्होंने सरकार में हिस्सा नहीं लिया। वो नहीं चाहते थे कि मंत्री बनने के बाद अपने सांसदों पर उनकी पकड़ कमजोर हो। लेकिन वाजपेयी सरकार के दौरान जब भी वो दिल्ली आते, उनकी जेब में अपने राज्य के लिए एक भारी भरकम पैकेज की मांग का मसौदा जरूर मौजूद होता था। 1996 से 1998 के बीच यूनाइटेड फ्रंट के संयोजक के तौर पर उन्होंने 13 पार्टियों का गठबंधन चलाने में सबसे महत्वपर्ण भूमिका तो निभाई, मगर प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और आईके गुजराल को ही बनने दिया। वो खुद पीएम की रेस में नहीं कूदे क्योंकि उन्हें अंदाजा था कि ये सरकार पांच साल नहीं चलेगी। हुआ भी वही। मोदी के शासनकाल में बीजेपी के साथ 2014 में शुरू हुई टीडीपी की दोस्ती महज चार सालों तक चल पाई। 2018 में आंध्र-प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने से नाराज होकर टीडीपी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया और उनके दोनों मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था। चंद्रबाबू नायडू कब क्या दांव चल सकते हैं, इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हमेशा चिंता रहेगी। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बीजेपी के लिए मनमुताबिक नहीं रहे। पार्टी को 240 सीटों पर जीत के साथ अकेले बहुमत नहीं मिला, हालांकि 293 सीटों के साथ एनडीए केंद्र में सरकार बनाने जा रही है। नई सरकार के गठन को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में भी इस बार जोश-उत्साह कम ही दिखाई दे रहा है। चुनाव नतीजों के बाद नरेंद्र मोदी भी अभी तक अपने “सियासी लय” में नहीं आ पा रहे हैं। दूसरी ओर सरकार में शामिल होने की तैयारी कर रहे टीडीपी, जदयू, शिंदे की शिवसेना और चिराग पासवान की लोजपा की मलाईदार मंत्रालयों की डिमांड बढ़ती जा रही है। बिहार के सीएम नीतीश कुमार का आत्मविश्वास बढ़ा है। उन्हें इस बार बिहार में 12 सीटें मिली हैं। वह इस बार किंगमेकर की भूमिका में हैं। अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश बड़े भाई की भूमिका में होंगे। अब भाजपा को जिस तरह एनडीए के अपने सहयोगियों की बातें सुननी और उसे साथ लेकर चलने की मजबूरी के साथ चलना होगा। बता दें कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद नीतीश कुमार और टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू किंगमेकर बनकर उभरे हैं। एनडीए को 543 में से 293 सीटें मिलीं, जबकि इंडिया ब्लॉक को 233 जगहें मिल सकीं। भाजपा को 240 सीटों के साथ बहुमत तो मिला, लेकिन वो मैजिक नंबर 272 को नहीं छू सकी, जिसके दम वो अकेले सरकार बना सकती थी। भाजपा समेत पूरा एनडीए फिलहाल आंध्रप्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी और बिहार के जनता दल (यूनाइटेड) के भरोसे है, नीतीश की पार्टी जेडीयू को 12 सीटें मिली हैं जो एनडीए में टीडीपी (16) के बाद सबसे बड़ी भागीदार है। माना जा रहा है कि तेलुगु देशम पार्टी को 4, जेडीयू को 3, एलजेपी और शिवसेना को 2-2 मंत्री पद मिल सकते हैं। हालांकि, नीतीश ने 4 कैबिनेट और एक राज्यमंत्री पद की डिमांड रखी है। वहीं भाजपा के बाद एनडीए की सबसे बड़ी पार्टी टीडीपी और जेडीयू स्पीकर के पद साथ वित्त मंत्रालय मांग रही है। इसकी वजह है कि जांच एजेंसी ईडी वित्त मंत्रालय के तहत आती है। हालांकि रक्षा, वित्त, गृह और विदेश मंत्रालय भाजपा अपने पास ही रखेगी। एनडीए में भाजपा के अलावा 14 सहयोगी दलों के 53 सांसद हैं। उनकी कुल सीटें 293 हैं। गठबंधन में चंद्रबाबू की टीडीपी 16 सीटों के साथ दूसरी और नीतीश की जेडीयू 12 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। दोनों ही पार्टियां इस वक्त भाजपा के लिए जरूरी हैं। इनके बिना भाजपा का सरकार बनाना मुश्किल है। वहीं कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए लिखा- 30 अप्रैल 2014 को पवित्र नगरी तिरुपति में आपने आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने का वादा किया था। क्या वह वादा अब पूरा होगा? क्या आप विशाखापट्टनम स्टील प्लांट के निजीकरण को अब रोकेंगे? क्या आप बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देकर अपने 2014 के चुनावी वादे और अपने सहयोगी नीतीश कुमार की दस साल पुरानी मांग को पूरा करेंगे? क्या आप बिहार के जैसा ही पूरे देश में जाति जनगणना करवाने का वादा करते हैं।