श्री राम सेवक सभा द्वारा आज प्रेस वार्ता की जिसमे 122 वे श्री नंदा महोत्सव नैनीताल 2024 की जानकारी दी गई की महोत्सव 8 से 15 सितंबर तक मनाया जायेगा । 8 सितंबर को 145 दिन में उद्घाटन होगा जिसमें विधायक सहित जिला प्रशासन के अधिकारी रहेंगे । महासचिव जगदीश बावड़ी ने बताया की सभा के बाल कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे तो छोलिया दल भी होंगे ।1918 में स्थापित श्री राम सेवक सभा 1926 से श्री नंदा देवी महोत्सव का आयोजन करती आ रही है । उत्तराखंड की लोक संस्कृति एवं परंपराओं का निर्वहन तथा उसके संरक्षण का काम श्री राम सेवक सभा कर रही है । इस वर्ष कदली का वृक्ष रोखड , थापला मंगोली से लाया जाएगा तथा यशपाल रावत द्वारा दिए गए 21 पौधे रोपे जायेंगे ।कदली नगर भ्रमण ,लोकगीत प्रतियोगिता ,क्विज , लोक पारंपरिक कलाकार देवरा मूर्ति निर्माण , पांच आरती ,महा भंडारा,सुंदर काण्ड ,विश्व शांति हेतु हवन सहित ताल चैनल एवम यू ट्यूब से सीधा प्रसारण प्रमुख भाग होंगे । मूर्ति निर्माण का कार्य चंद्र प्रकाश साह , आरती सम्मल, मोनिका साह द्वारा किया जायेगा। यूनेस्को के हेरिटेज साइट में महोत्सव शामिल हो इसके लिए सिग्नेचर अभियान चलाया जाएगा । महोत्सव को राजकीय महोत्सव ए श्रेणी होने पर सरकार का धन्यवाद किया गया । महोत्सव में पर्यावरण संरक्षण तथा गंदगी न हो तथा पॉलीथिन बंद रहेगा । प्रो ललित तिवारी ,मुकेश जोशी तथा हरीश राणा को मेला प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई है । प्रेस वार्ता में मनोज साह ,अशोक साह ,जगदीश बावड़ी ,राजेंद्र बिष्ट ,बिमल चौधरी ,मुकेश जोशी ,भुवन बिष्ट , देवेंद्र लाल साह ,मोहित साह ,आनंद बिष्ट ,गोधन सिंह , गिरीश भट्ट प्रो ललित तिवारी उपस्थित रहे । सभा परिवार ने महोत्सव में सभी श्रद्धालू को आमंत्रित किया है।

नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव का इतिहास 1903 से जुड़ा हुआ है, जब इस धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव की शुरुआत हुई थी। यह महोत्सव नंदा देवी और उनकी बहन सुनंदा देवी को समर्पित है, जिन्हें कुमाऊं की देवी के रूप में पूजा जाता है। नैनीताल के नंदा देवी मंदिर में हर साल इस महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि कुमाऊं की सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है।
नंदा देवी महोत्सव की शुरुआत 1903 में नैनीताल में की गई थी। इसे नैनीताल के स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने मिलकर शुरू किया, जो कुमाऊं की पारंपरिक देवी नंदा देवी की पूजा करते थे। इस महोत्सव का उद्देश्य देवी की कृपा प्राप्त करना और उनके प्रति आस्था व्यक्त करना था।
इस महोत्सव की प्रमुख परंपरा में देवी नंदा की प्रतिमा का निर्माण और उसकी पूजा शामिल है। इसके बाद प्रतिमा को एक बड़े जुलूस के साथ नैनी झील के पास विसर्जित किया जाता है। इस दौरान स्थानीय लोग पारंपरिक वस्त्रों में सज-धज कर देवी के भजन और गीत गाते हैं।
महोत्सव को स्थानीय राजाओं और प्रशासन से भी समर्थन मिला। कुमाऊं के चंद राजाओं ने इस महोत्सव को अपने संरक्षण में लिया और इसे एक बड़े स्तर पर मनाने की परंपरा को बढ़ावा दिया। उनके समय में इस उत्सव को और अधिक भव्य रूप मिला और यह जनता के बीच लोकप्रिय होता चला गया।
नंदा देवी महोत्सव नैनीताल के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। कुमाऊं क्षेत्र में नंदा देवी को कुल देवी माना जाता है, और इस महोत्सव में देवी की पूजा करने का उद्देश्य उनके आशीर्वाद से क्षेत्र की समृद्धि और शांति की प्राप्ति करना है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह महोत्सव महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें लोकनृत्य, लोकगीत, और पारंपरिक रीति-रिवाजों का प्रदर्शन होता है।
आज नंदा देवी महोत्सव नैनीताल के प्रमुख उत्सवों में से एक है और यह सितंबर के महीने में मनाया जाता है। इसमें स्थानीय कलाकार, महिलाएँ और बच्चे बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। इस महोत्सव में हजारों श्रद्धालु और पर्यटक सम्मिलित होते हैं। नैनीताल का नंदा देवी मंदिर इस समय रंग-बिरंगे झंडों और फूलों से सजाया जाता है, और एक भव्य जुलूस निकाला जाता है जो शहर की गलियों से होते हुए नैनी झील तक पहुँचता है।
महोत्सव के दौरान देवी नंदा और सुनंदा की प्रतिमा बनाई जाती है, जिसे बाद में विसर्जित किया जाता है।
देवी की प्रतिमा के साथ एक भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसमें पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग होता है।
इस दौरान कुमाऊं के पारंपरिक लोकनृत्य, गीत और नाट्य कार्यक्रम होते हैं, जो इस महोत्सव को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाते हैं।
महोत्सव के दौरान नैनीताल में एक बड़ा मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें स्थानीय हस्तशिल्प, खानपान और विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ प्रदर्शित की जाती हैं।
नंदा देवी महोत्सव नैनीताल की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह न केवल कुमाऊं की देवी नंदा की पूजा का अवसर है, बल्कि क्षेत्र के सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर को संरक्षित करने और उसे नए पीढ़ी तक पहुँचाने का भी माध्यम है।
