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Home»राजनीति»देश में लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ कराए जाने को लेकर मोदी सरकार ने दी मंजूरी
राजनीति

देश में लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ कराए जाने को लेकर मोदी सरकार ने दी मंजूरी

Pahad ki KhabarBy Pahad ki KhabarSeptember 21, 2024No Comments
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(देश में एक राष्ट्र एक चुनाव कराए जाने को लेकर केंद्र ने तैयारी शुरू कर दी है। वन नेशन वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी बनाई गई थी जिसके चेयरमैन पूर्व राष्ट्रपति राममानथ कोविंद थे। कोविंद ने अपनी रिपोर्ट मोदी कैबिनेट को दी जिसके बाद उसे सर्वसम्मति से मंजूर कर दिया गया। अब केंद्र सरकार इसे शीतकालीन सत्र में संसद में लाएगी। हालांकि, ये संविधान संशोधन वाला बिल है और इसके लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी है। 2024 के आम चुनाव में बीजेपी ने वन नेशन वन इलेक्शन का वादा किया था। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ‘पहले फेज में विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ होंगे। इसके बाद 100 दिन के भीतर दूसरे फेज में निकाय चुनाव साथ कराए जाएं। केंद्र में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत कई दलों ने इसका विरोध किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि वह इसे नहीं मानते हैं और लोकतंत्र में यह नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को चलाने के लिए जब चाहिए तब चुनाव करवाना पड़ेगा। शंभू नाथ गौतम)

मोदी सरकार ने बुधवार, 18 सितंबर को एक बड़े फैसले को मंजूरी दी। राजधानी दिल्ली में आयोजित महत्वपूर्ण कैबिनेट की बैठक में एक ‘राष्ट्र एक चुनाव यानी वन नेशन वन इलेक्शन” करने के प्रस्ताव को मोदी सरकार ने मंजूरी दे दी है। जिसके बाद इसे अब आगे के लिए बढ़ाया जाएगा। मंगलवार, 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर मोदी सरकार का 100 दिन का रिपोर्ट कार्ड पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने वन नेशन वन इलेक्शन करने के लिए घोषणा की थी। 24 घंटे बाद 18 सितंबर को आयोजित कैबिनेट की बैठक में केंद्र सरकार ने इसे हरी झंडी दे दी है। इसके तहत देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। केंद्र में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत कई दलों ने इसका विरोध किया है। बता दें कि वन नेशन वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी बनाई गई थी जिसके चेयरमैन पूर्व राष्ट्रपति राममानथ कोविंद थे। कोविंद ने अपनी रिपोर्ट मोदी कैबिनेट को दी जिसके बाद उसे सर्वसम्मति से मंजूर कर दिया गया। अब केंद्र सरकार इसे शीतकालीन सत्र में संसद में लाएगी। हालांकि, ये संविधान संशोधन वाला बिल है और इसके लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी है। 2024 के आम चुनाव में बीजेपी ने वन नेशन वन इलेक्शन का वादा किया था। हालांकि इसके बाद आगे का सफर आसान नहीं होने वाला है। इसके लिए संविधान संशोधन और राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है, जिसके बाद ही इसे लागू किया जाएगा। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वन नेशन वन इलेक्शन के बारे में जानकारी दी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ‘पहले फेज में विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ होंगे। इसके बाद 100 दिन के भीतर दूसरे फेज में निकाय चुनाव साथ कराए जाएं। अश्विनी वैष्णव ने कहा कि ‘एक देश एक चुनाव’ पर समिति ने 191 दिन तक काम किया और 21,558 लोगों से राय ली। 80% लोगों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें 47 में से 32 राजनीतिक दल भी शामिल हैं। समिति ने पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों, चुनाव आयुक्तों और राज्य चुनाव आयुक्तों से भी बात की। वैष्णव ने बताया कि ‘एक देश एक चुनाव’ दो चरणों में लागू होगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगरपालिका) होंगे। उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी लंबे समय से वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत करते आए हैं। उन्होंने कहा था कि चुनाव सिर्फ तीन या चार महीने के लिए होने चाहिए, पूरे 5 साल राजनीति नहीं होनी चाहिए। साथ ही चुनावों में खर्च कम हो और प्रशासनिक मशीनरी पर बोझ न बढ़े।

आजादी के बाद साल 1967 तक देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराए गए थे–

भारत के लिए यह कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है देश में आजादी के बाद से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे। एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित परिवर्तनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, विधि आयोग भी एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट जल्द ही पेश कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक साथ चुनाव कराने के प्रबल समर्थक रहे हैं। मोदी सरकार का यह बड़ा फैसला स्वागत योग्य कहा जा सकता है लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ करिने के लिए चुनौतियां भी बहुत होंगी। वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती है संविधान और कानून में बदलाव। एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। इसके बाद इसे राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा। वैसे तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल का होता है लेकिन इन्हें पहले भी भंग किया जा सकता है। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि अगर लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा भंग होती है तो एक देश, एक चुनाव का क्रम कैसे बनाए रखें। अपने देश में ईवीएम और वीवीपैट से चुनाव होते हैं, जिनकी संख्या सीमित है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने से इनकी संख्या पूरी पड़ जाती है। एक साथ लोकसभा, विधानसभाओं के चुनाव होंगे तो अधिक मशीनों की जरूरत पड़ेगी। इनको पूरा करना भी चुनौती होगी। एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षाबलों की जरूरत को पूरा करना भी एक बड़ा सवाल राजनीतिक दलों की एक राय नहीं बन पाएगी। लेकिन यहां हम आपको बता दें कि वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए सभी राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हैं, इस पर एक राय नहीं बन पा रही है। कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि ऐसे चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा, लेकिन क्षेत्रीय दलों को इससे नुकसान होगा। खासकर क्षेत्रीय दल इस तरह के चुनाव के लिए तैयार नहीं हैं। इनका यह भी मानना है कि अगर वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था की गई तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तर के मुद्दे दब जाएंगे। वहीं कांग्रेस, आम आदमी पार्टी समेत कई दलों ने कैबिनेट के इस प्रस्ताव का विरोध किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि वह इसे नहीं मानते हैं और लोकतंत्र में यह नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को चलाने के लिए जब चाहिए तब चुनाव करवाना पड़ेगा।

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