जम्मू-कश्मीर के बाद हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव का शनिवार, 5 अक्टूबर को समापन हो गया। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस की यह पहली परीक्षा होने जा रही है। वहीं जम्मू-कश्मीर में मोदी सरकार की 5 साल पहले हटाई गई 370 पर घाटी की आवाम फैसला सुनाएगी। अगर हरियाणा की बात करें तो चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अपनी सरकार बनाने के लिए आस्वस्त दिखाई दी । लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने प्रचार के दौरान सभी रैलियों में मंच से पूरे आत्मविश्वास के साथ नारा लगाया कि “भाजपा जा रही है और कांग्रेस आ रही है।” वहीं भाजपा जीत की हैट्रिक लगाकर 10 साल पुराना किला बचाने के लिए सियासत के हर ‘हथियार’ का इस्तेमाल करती दिखाई दी। जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान अनुच्छेद 370 का मुख्य मुद्दा बना। भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान 370 हटाने का श्रेय लेती रही । जम्मू-कश्मीर में प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने मंच से कहा यह अनुच्छेद अब इतिहास हो चुका है। इसकी वापसी कभी नहीं हो सकती। वहीं नेशनल कान्फ्रेंस कश्मीर घाटी के लोगों की भावनाओं को भुनाने के लिए कहती रही कि वह अनुच्छेद 370 को फिर से लागू करवाएगी। नए परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार चुनाव हुए ।
जम्मू-कश्मीर के बाद हरियाणा में शनिवार, 5 अक्टूबर को लोकतंत्र का महापर्व खत्म हो गया। इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम मंगलवार, 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस की यह पहली परीक्षा होने जा रही है। वहीं दूसरी ओर जम्मू कश्मीर में मोदी सरकार की 5 साल पहले हटाई गई 370 पर भाजपा के लिए घाटी की आवाम फैसला सुनाएगी। अगर हरियाणा की बात करें तो पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अपनी सरकार बनाने के लिए आस्वस्त दिखाई दिए । केंद्र स्तर पर एक बार फिर दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच वर्चस्व की टक्कर रही। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हरियाणा प्रचार के दौरान सभी रैलियों में मंच से पूरे आत्मविश्वास के साथ नारा लगाया कि “भाजपा जा रही है और कांग्रेस आ रही है।” वहीं दूसरी ओर बीजेपी राज्य की सत्ता में तीसरी बार वापसी करने के लिए उम्मीद लगाए हुए हैं । किसान, पहलवान और जवान के साथ अग्निवीर के मुद्दे के साथ ही 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी बीजेपी के लिए चुनौती बनी । वहीं, बीजेपी भी हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट से लेकर कर्नाटक के अधूरे वादों और राहुल गांधी के आरक्षण पर अमेरिका में दिए बयान तक, इन सबको लेकर कांग्रेस को घेरा । हरियाणा चुनाव के दौरान कांग्रेस अपनी पार्टी के नेताओं की अंदरूनी कलह से भी जूझती दिखाई दी । कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सीएम के लिए मजबूत दावेदार माना जा रहा है। वहीं, कुमारी सैलजा भी सीएम के लिए दावेदारी कर चुकी हैं। कांग्रेस से रणदीप सिंह सुरजेवाला भी सीएम दावेदार हैं। शैलजा की नाराजगी खुलकर सामने आ गई। हरियाणा के दंगल में कौन बनेगा “सरताज” दो दिन बाद तस्वीर साफ हो जाएगी। महाभारत और पानीपत के ऐतिहासिक युद्धों की भूमि हरियाणा में विधानसभा चुनाव का भीषण ‘रण’ माना जा रहा है। भाजपा जीत की हैट्रिक लगाकर 10 साल पुराना किला बचाने के लिए सियासत के हर ‘हथियार’ का इस्तेमाल करती दिखाई दी। कांग्रेस सत्ता के एक दशक के सूखे को खत्म करने के लिए अपने तरकश से आरोपों के साथ वादों के तीर निकाल कर दाव चल रही है लेकिन सच्चाई यही है कि चुनाव जातिगत समर्थन के इर्द-गिर्द सिमटा रहा । भाजपा को गैर-जाट मतों पर भरोसा है तो कांग्रेस को जाट वोटों के एकमुश्त समर्थन की आस है। ऐसे में सत्ता की चाबी करीब 21 फीसदी दलित मतों के पास है। दोनों प्रमुख दल अपने समर्थक मतों में टूट को बचाते हुए दलितों का समर्थन हासिल करने को जी-जान से जुटे । हरियाणा में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही लेकिन उनके अलावा चौधरी देवीलाल की विरासत लिए चौटाला परिवार दो अलग-अलग पार्टियों से उतर कर अपना दम दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । इन सबके बीच आम आदमी पार्टी समेत कई छोटे दल भी वजूद दिखाने के लिए चुनाव मैदान में हैं। भाजपा दलितों वोटों में सेंधमारी करने के लिए कांग्रेस दिग्गज कुमारी शैलजा के अपमान करने के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी अपनी चुनावी सभाओं में कांग्रेस में आंतरिक फूट के मुद्दे को खूब हवा दी। कांग्रेस ने 90 में से 28 सीटों पर जाट समाज के उम्मीदवार उतारे । सरकार बनाने के लिए विधानसभा की इन एक तिहाई सीटों के साथ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 17 सीटों पर कांग्रेस पूरा जोर लगाया। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा और कांग्रेस महासचिव कुमारी शैलजा के बीच खाई से नुकसान का डर भी पार्टी को सता रहा है। पिछले दो दशकों में हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस ही सबसे मुख्य पार्टियों में से एक रही हैं। इन दोनों ने इनेलो को भी पछाड़ दिया है। 2005 से लेकर 2014 तक भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस सरकार ने राज्य पर शासन किया। वहीं 2014 के इलेक्शन में मोदी लहर चली थी, इसमें पिछली दो बार से राज्य में भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज है। हालांकि, 2019 में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए जेजेपी का सहारा लेना पड़ा। वहीं अब लोकसभा इलेक्शन की बात करें तो साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्यादातर सीटें जीती थीं। वहीं 2014 में बीजेपी आगे रही और फिर 2019 में उसने सभी सीटों पर एकतरफा जीत हासिल की थी। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर वापसी करते हुए बीजेपी के बराबर ही पांच सीटें जीती। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जेजेपी के साथ लोकसभा में सीट बंटवारे को लेकर बात नहीं बन पाई और उसने जेजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया। इसके बाद बीजेपी को एक नया मंत्रिमंडल और नया सीएम मिला। मनोहर लाल खट्टर की जगह पर नायब सिंह सैनी को प्रदेश की कमान सौंपी गई। बीजेपी ने बहुमत के लिए निर्दलीय विधायकों की मदद ली थी। हालांकि, बीजेपी कांग्रेस पार्टी के बढ़ते प्रभाव को नहीं रोक पाई और कांग्रेस पांच सीटें जीतने में कामयाब रही। हरियाणा में अगर कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो मोदी सरकार के लिए यह बड़ा झटका होगा। दिल्ली में विपक्ष की ताकत और बढ़ेगी।
हरियाणा चुनाव से दो दिन पहले भाजपा नेता अशोक तंवर कांग्रेस में हुए शामिल–
हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक दो दिन पहले भारतीय जनता पार्टी को आज तगड़ा झटका लगा । कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए अशोक तंवर ने दोबारा कांग्रेस में वापसी की । राहुल गांधी के नेतृत्व में पूर्व हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने दोबारा कांग्रेस का हाथ थाम लिया। अशोक तंवर हिसार से लोकसभा सांसद रह चुके हैं। वह हरियाणा कांग्रेस के भी अध्यक्ष रह चुके हैं। अक्तूबर 2019 में उन्होंने हुड्डा से कथित मनमुटाव की वजह से कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। बड़ी बात ये है कि अशोक तंवर ने 3 अक्टूबर दोपहर 1:45 बजे भाजपा उम्मीदवार की रैली में भाग लिया और फिर ट्वीट भी किया। इसके बाद अशोक तंवर कांग्रेस के कार्यक्रम में दिखाई दिए। प्रचार के आखिरी दिन महेंद्रगढ़ रैली में जैसे ही राहुल गांधी अपना भाषण समाप्त किया मंच से एक घोषणा की गई और दर्शकों से कुछ मिनट इंतजार करने के लिए कहा गया। इसके तुरंत बाद, अशोक तंवर मंच पर आए और घोषणा की गई कि उनकी घर वापसी हो गई है। इसके बाद कांग्रेस नेताओं ने मंच से ही नारे लगाए राज्य में भाजपा जा रही है कांग्रेस आ रही है। तंवर को राहुल गांधी का करीबी माना जाता था और उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा के साथ मतभेदों के बाद 2019 में कांग्रेस छोड़ दी थी। कांग्रेस ने कहा कि पार्टी कांग्रेस ने लगातार शोषितों, वंचितों के हक की आवाज उठाई है और संविधान की रक्षा के लिए पूरी ईमानदारी से लड़ाई लड़ी है। हमारे इस संघर्ष और समर्पण से प्रभावित होकर आज भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व सांसद, हरियाणा में बीजेपी की कैंपेन कमेटी के सदस्य और स्टार प्रचारक अशोक तंवर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस परिवार में आपका पुनः स्वागत है, भविष्य के लिए शुभकामनाएं। अशोक तंवर का कांग्रेस से काफी पुराना नाता रहा है। साल 1999 में वह एनएसयूआई में सचिव थे और 2003 में इसके अध्यक्ष बने। साल 2009 में वह कांग्रेस के टिकट पर सिरसा लोकसभा सीट से सांसद बने थे। इसके बाद तंवर साल 2014 से लेकर 2019 तक हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। हालांकि, 2019 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। कांग्रेस के बाद तंवर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। इसके बाद 2022 में वह आम आदमी पार्टी में चले गए। इसके बाद वह भाजपा के साथ हो गए। तंवर ने 2024 में सिरसा सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस की कुमारी शैलजा से हार गए।
जम्मू-कश्मीर चुनाव में 370 मुख्य मुद्दा बना, भाजपा राज्य में अकेले चुनाव लड़ी–
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान अनुच्छेद 370 का मुख्य मुद्दा बना। भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान 370 हटाने का श्रेय लेती रही । जम्मू-कश्मीर में प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने मंच से कहा यह अनुच्छेद अब इतिहास हो चुका है। इसकी वापसी कभी नहीं हो सकती। वहीं नेशनल कान्फ्रेंस कश्मीर घाटी के लोगों की भावनाओं को भुनाने के लिए कहती रही कि वह अनुच्छेद 370 को फिर से लागू करवाएगी। नए परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार चुनाव हुए । कुल 90 सीटों में 47 सीटें कश्मीर में, जबकि 43 सीटें जम्मू में हैं। भाजपा का जम्मू रीजन में बहुत अच्छा प्रभाव है। जम्मू कश्मीर में इस बार के विधानसभा चुनाव तीन चरणों में हुए थे। 90 विधानसभा सीटों के लिए आखिरी चरण की वोटिंग 1 अक्तूबर को संपन्न हुई थी। इससे पहले 18 सितंबर और 25 सितंबर को पहले और दूसरे चरण की वोटिंग हुई थी।इस बार के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने गठबंधन किया है। बीजेपी राज्य में अकेले चुनाव लड़ी है। चुनावों में बीजेपी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस की तरफ राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के अलावा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रचार किया । चुनावों में स्टेटहुड का मुद्दा छाया रहा। धारा 370 हटने के बाद राज्य में हुए पहले विधानसभा चुनावों से बीजेपी को काफी उम्मीदें हैं। बीजेपी इस प्रयास में है कि जम्मू डिवीजन जहां 43 विधानसभा सीटें हैं, में अधिक से अधिक सीटों पर कब्जा कर सके। दरअसल जम्मू कश्मीर विधानसभा में त्रिशंकु विधानसभाओं का इतिहास रहा है। अगर त्रिशंकु विधानसभा बनती है तो सबसे अधिक संभावना बीजेपी के ही सीएम की होगी। क्योंकि 5 नामित सदस्यों का सहयोग भी बीजेपी को मिलने की उम्मीद रहेगी। 2002 के विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस को 87 सदस्यीय विधानसभा में 57 सीटों से घटकर 28 सीटों पर आ गई थी। कांग्रेस ने 20 सीटें जीतीं और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने 16 सीटें हासिल कीं, जिसके बाद कांग्रेस, पीडीपी और कुछ छोटे दलों ने मिलकर सरकार बनाई। 2008 के विधानसभा चुनावों में भी त्रिशंकु परिणाम आए, जिसके कारण नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को मिलकर सरकार बनानी पड़ी। घाटी में राजनीतिक दलों के बीच बढ़ती दरार के चलते, जम्मू के नेता यह मानने लगे कि जम्मू को भी अपना मुख्यमंत्री मिल सकता है। 2014 के चुनावों में बीजेपी ने जम्मू से 25 सीटें जीतीं, जब हिंदू मतदाता पार्टी के पीछे एकजुट हो गए थे। पीडीपी के साथ बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई। जाहिर है बीजेपी ने ऐसा राज्य में अपनी जड़ें जमाने के लिए किया होगा। अब बीजेपी खुलकर कह रही है कि यदि पार्टी पूर्ण बहुमत से जीतती है, तो मुख्यमंत्री जम्मू से होगा। बहरहाल 8 अक्टूबर को हरियाणा और जम्मू कश्मीर में किसकी बनेगी सरकार, तस्वीर साफ हो जाएगी।