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Home»राज्य समाचार»उत्तराखण्ड»रोशनी और खुशियों के साथ खरीदारी का भी पर्व है दीपावली
उत्तराखण्ड

रोशनी और खुशियों के साथ खरीदारी का भी पर्व है दीपावली

Pahad ki KhabarBy Pahad ki KhabarOctober 27, 2024No Comments
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(साल भर के इंतजार के बाद बाजार भी जगमगाने लगे हैं। बाजारों में रौनक बता रही है कि दीपावली का उत्सव शुरू हो चुका है। ग्राहकों को खरीदारी के लिए कई जगहों पर आकर्षक ऑफर के साथ गिफ्ट भी दिए जा रहे हैं। पर्व का उत्साह देखकर दुकानदार भी खुश नजर आ रहे हैं। क्योंकि सुबह से बाजार में भीड़ उमड़ रही है और लोग अपने-अपने स्तर पर खरीदारी भी शुरू कर दी है। ऐसे में व्यापारियों को भी समझ आ गया है कि इस बार दीपावली के लिए बाजार बूम करने लगा है। इन दिनों मौसम भी बहुत अच्छा रहता है। वातावरण में गुलाबी ठंड भी शुरू हो चुकी है। घर-घर में साफ-सफाई का कार्य किया जा रहा है। पांच दिवसीय उत्सव दीपावली की शुरुआत होने वाली है। जिसकी शुरुआत धनतेरस से होती है और भैया दूज के दिन खत्म होती है। इस बार धनतेरस 29 अक्टूबर और दीपावली 31 अक्टूबर को पूरे देश भर में धूमधाम के साथ मनाई जाएगी।)

पूरे देश भर में रोशनी और खुशियों का पर्व दीपावली की धूम शुरू हो चुकी है। यह पर्व हो खरीदारी के लिए भी जाना जाता है। साल भर के इंतजार के बाद बाजार भी जगमगाने लगे हैं। बाजारों में रौनक बता रही है कि दीपावली का उत्सव शुरू हो चुका है। देश भर के छोटे बड़े सभी शहरों में दीपावली को लेकर खास तैयारी की गई है। वहीं दूसरी ओर दीपावली के आसपास मौसम भी बहुत अच्छा रहता है। वातावरण में गुलाबी ठंड भी शुरू हो चुकी है। घर-घर में साफ-सफाई का कार्य किया जा रहा है। पांच दिवसीय उत्सव दीपावली की शुरुआत होने वाली है। दिवाली की शुरुआत धनतेरस से होती है और भैया दूज के दिन समाप्त होता है। हर साल दिवाली का त्योहार हमारे देश में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। धनतेरस दिवाली के पहले मनाया जाता है। इस दिन लोग सोने-चांदी के सिक्के, बर्तन, ज्वेलरी आदि चीजों की खरीदारी करते हैं। मान्यता है कि इन चीजों को खरीदने से घर में खुशहाली आती है। इस साल धनतेरस की तिथि 29 अक्टूबर को पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा करके उनसे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। इस दिन बहीखाते, कपड़े, वाहन, धातु आदि की खरीदारी की जाती है। क्योंकि, पृथ्वी महालक्ष्मी का स्वरूप है। इसलिए पृथ्वी से प्राप्त धातु, सोना, चांदी, लोहा, मिट्‌टी ये सब पृथ्वी के ही प्रतिनिधित्व हैं। इसलिए धनतेरस और दीपावली के अवसर पर सोने-चांदी के गहने, सिक्के, बर्तन और वाहन खरीद सकते हैं। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो तो मिट्टी के बर्तन की खरीदारी कर सकते हैं। ये सब लक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होते हैं। लक्ष्मी सभी से प्रसन्न रहती है। अपनी सामर्थ्य जैसी हो, वैसी धातु के बर्तन, वस्त्र और अन्य वस्तुओं की खरीदारी करनी चाहिए। जब हम लक्ष्मी की पूजा कर करें, तब उन पात्रों, सिक्कों की पूजा करें। धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं। इस साल नरक चतुर्दशी 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने की अमावस्या पर दीवाली मनाई जाती है। 31 अक्टूबर को पूरे देश में दिवाली का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन मां लक्ष्मी, गणेश जी, सरस्वती माता और कुबेर देव की पूजा होती है। इस दिन लोग अपने घरों में दीये जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत करते हैं, ताकि घर में खुशहाली और संपन्नता बनी रहे। दीपावली को लेकर बाजार में तैयारियां शुरू हो गई हैं। ग्राहकों को खरीदारी के लिए कई जगहों पर आकर्षक ऑफर के साथ गिफ्ट भी दिए जा रहे हैं। दीपावली पर खरीदारी की शुरुआत गुरु पुष्य नक्षत्र यानी 24 अक्टूबर से हो चुकी है। 3 नवंबर तक खरीदारी के कई शुभ संयोग बन रहे हैं। इस मौके पर राशि के अनुसार खरीदारी कर लाभ पा सकते हैं। दीपावली पर्व को देखते हुए बाजारों में लोग खरीददारी करने के लिए पहुंचने लगे हैं। ग्राहकों से बाजार भी गुलजार होने लगे है। ग्राहकों के स्वागत में दुकानों पर तरह-तरह की सजावट की गई है। इसी के तहत बाजार में रौनक लौट आई है और लोगों का पर्व का उत्साह देखकर दुकानदार भी खुश नजर आ रहे हैं। क्योंकि सुबह से बाजार में भीड़ उमड़ रही है और लोग अपने-अपने स्तर पर खरीदारी भी शुरू कर दी है। ऐसे में व्यापारियों को भी समझ आ गया है कि इस बार दीपावली के लिए बाजार बूम करने लगा है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए दुकानों की सजावट भी शुरू हो गई है। साथ ही दीपावली से संबंधित दुकानों में भीड़ उमड़ रही है। आने वाले दो से तीन दिनों के बाद बाजार में और भी भीड़ उमड़ेगी जो पूरे पर्व तक रहेगा।
दीपावली पर्व को लेकर मिठाई दुकानदारों में भी तैयारी तेज हो गई है। शहर का खोवा मंडी हो या फिर सभी छोटे-बड़े मिष्ठान दुकानें हो, सभी में विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट मिठाई बनने लगी है। दिवाली में काजू बर्फी, काजू, गजक, काजू और केसर, लडडू के साथ अन्य प्रकार की मिठाइयों की सबसे ज्यादा डिमांड रहती है। कपड़ा बाजार में अभी से रौनक आ चुका है। इसकी मुख्य वजह यह है कि पर्व के दौरान इन कपड़ों दुकानों में इतनी अधिक भीड़ रहती है कि मनपसंद रेडीमेंट कपड़े मिलना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में लोग पर्व के लिए अभी से कपड़ा खरीदकर रहे हैं, ताकि पर्व के दौरान उन्हें छटे हुए कपड़ा न खरीदना पड़े। सोना-चांदी व अन्य प्रकार की आभूषण की पूछपरख अभी से होने लगी है। हालांकि ज्यादातर लोग धनतेरस के दिन सोना-चांदी खरीदते हैं, पर अभी से अपने पसंद के अनुसार सोने-चांदी के आभूषण बुक कराया जा रहा है। वहीं खरीदी धनतेरस को की जाएगी। इस बार ज्वेलर्स वाले काफी खुश नजर आ रहे हैं। आटो मोबाइल लाइन में अभी से तेजी आ गई है। दो-पहिया वाहन से लेकर चार पाहिया वाहन पहले से बुक कराए जा चुके हैं। गाड़ी खरीदने के लिए लोगों को मशक्कत करना पड़ रहा है। हालत यह है कि अभी ग्राहकों के पसंद के अनुसार से गाड़ी के कलर नहीं मिल पा रहे है। ऐसे में जो भी गाड़ी मिल रही है, उसे बुक कराया जा रहा है।

भगवान श्रीराम 14 वर्षों के बाद वनवास से लौटने पर अयोध्या नगरी खुशियों के दीप जलाए गए थे–

दीपावली क्यों मनाई जाती है, इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर अयोध्या में उनका भव्य स्वागत किया गया और खुशियों के दीप जलाए गए। तभी से यह त्योहार मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवान श्री राम 14 वर्षों के बाद वनवास की समय अवधि पूर्ण करके अपनी जन्मभूमि अयोध्या नगरी लौटे थे। इस उपलक्ष में संपूर्ण अयोध्या वासियों ने दीपोत्सव का आयोजन कर भगवान श्रीराम का स्वागत किया था। तब से हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली का त्योहार उसी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। साथ ही घरों के साथ-साथ आसपास की जगहों को भी रोशनी से सजाया जाता है। हिंदू धर्म में प्रख्यात ग्रंथ महाभारत में यह बताया गया है कि कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को पांडव 13 वर्षों का वनवास पूरा कर अपने घर लौटे थे। बता दें कि कौरवों ने उन्हें शतरंज में हराकर 13 वर्षों तक वनवास का दंड दिया था। जब पांडव वापस अपने घर लौट कर आए थे तब उनके घर आगमन की खुशी में नगरवासियों ने दीपोत्सव के साथ उनका स्वागत किया था। मान्यता है कि तब से ही दिवाली पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों में इस बात का वर्णन मिलता है कि जब देवता और असुर समुद्र मंथन कर रहे थे। तब समुद्र मंथन से 14 रत्नों की उत्पत्ति हुई थी जिनमें से एक माता लक्ष्मी भी थीं। मान्यता है कि कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए दिवाली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन, यश और वैभव सभी की प्राप्ति होती है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। अंतिम हिंदू सम्राट राजा विक्रमादित्य की कहानी भी दिवाली के साथ जुड़ी हुई है। राजा विक्रमादित्य प्राचीन भारत के एक महान सम्राट थे। वे एक बहुत ही आदर्श राजा थे और उन्हें उनके उदारता, साहस तथा विद्वानों के संरक्षणों के कारण हमेशा जाना जाता है। इसी कार्तिक अमावस्या को उनका राज्याभिषेक हुआ था। राजा विक्रमादित्य मुगलों को धूल चटाने वाले भारत के अंतिम हिंदू सम्राट थे।

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