(बिहार में जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार पर प्रेशर बढ़ गया है । देशभर में विपक्षी गठबंधन की गोलबंदी के अगुआ नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का सिरदर्द बढ़ा दिया है। राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (36%) और पिछड़ा वर्ग (27%) की आबादी सबसे अधिक है। अगर इन दोनों की आबादी को जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा 63 फीसदी पहुंचता है। ऐसे में आबादी से अनुपात में आरक्षण की मांग जोर पकड़ सकती है। इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद ही आरजेडी चीफ लालू यादव ने कहा कि इस आबादी के हिसाब से ही नीतियां बनाने का वक्त है। नीतीश कुमार के मास्टर स्ट्रोक का कितना असर होगा ये तो आने वाले वक्त में पता चल जाएगा। )
बिहार सरकार ने सोमवार को जाति आधारित जनगणना सर्वे को जारी कर सियासी घमासान खड़ा कर दिया है।
लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव खुश नजर आ रहे हैं। वहीं भाजपा के तेवर गर्म हो गए । बिहार में काफी समय से चर्चा में रही जातीय जनगणना की रिपोर्ट 2 अक्टूबर को सार्वजनिक कर दी गई। बिहार सरकार ने राज्य में कराई गई जातिगत जनगणना के आकंड़ें सोमवार को जारी किए। इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 36 फीसदी अत्यंत पिछड़ा, 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी से थोड़ी ज्यादा अनुसूचित जाति और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या बताई गई है। बिहार सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़े ईबीसी संख्या को आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा बताते हैं। ये वहीं अत्यंत पिछड़ा वर्ग है जिसे एमवाई समीकरण के काट के तौर पर नीतीश कुमार ने गढ़ा था। ईबीसी की कुल आबादी सबसे ज्यादा है। तो वहीं हिंदू आबादी में नम्बर एक पर यादव (14.2) उसके बाद कुशवाहा (4.1) फिर तीसरे स्थान पर ब्राह्मण (3.67) हैं, राजपूतों की आबादी महज 3.46 प्रतिशत है। इसके साथ ही मुस्लिम कुल आबादी का 17.7 फीसदी हैं। इसे लेकर ही सियासी हलकों में हलचल मची है। नीतीश कुमार के मास्टर स्ट्रोक का कितना असर होगा ये तो आने वाले वक्त में पता चल जाएगा। बिहार की रिपोर्ट जारी होने के बाद इतना तो तय है कि केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार पर प्रेशर बढ़ेगा। देशभर में विपक्षी गठबंधन की गोलबंदी के अगुआ नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का सिरदर्द बढ़ा दिया है। इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद ही आरजेडी चीफ लालू यादव ने कहा कि इस आबादी के हिसाब से ही नीतियां बनाने का वक्त है। यानी आने वाले वक्त में ये मुद्दा देश की सियासी फिजा में गरमी लाने वाली है। लालू यादव की पार्टी शुरू से ये मांग करती रही है कि जिसकी जितनी आबादी है उसको उतनी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (36%) और पिछड़ा वर्ग (27%) की आबादी सबसे अधिक है। अगर इन दोनों की आबादी को जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा 63 फीसदी पहुंचता है। ऐसे में आबादी से अनुपात में आरक्षण की मांग जोर पकड़ सकती है। बिहार की तरह ही जाति आधारित जनगणना कराने की मांग राष्ट्रीय राजनीति में भी खड़ी हो सकती है। जिस तरीके से विपक्षी नेताओं के बयान सामने आ रहे हैं वो निश्चित रूप से केंद्र की बीजेपी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। पूर्व सीएम और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कहा कि हम सभी इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने हैं। भाजपा की तमाम साजिशों, कानूनी अड़चनों और तमाम साजिशों के बावजूद बिहार सरकार ने जाति आधारित सर्वे जारी कर दिया। वहीं, तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार में जाति आधारित सर्वे के आंकड़ें सार्वजनिक हो गए हैं। ऐतिहासिक क्षण। दशकों के संघर्ष का प्रतिफल। अब सरकार की नीतियां और नीयत दोनों ही जाति आधारित सर्वे के इन आंकड़ों का सम्मान करेंगे। हम लोगों ने कम समय में ये काम किया है। हमने नेता प्रतिपक्ष रहते हुए इसका प्रस्ताव रखा था। प्रधानमंत्री मोदी से मिलने भी गए थे। पीएम ने जातिगत जनगणना की मांग को लोकसभा और राज्यसभा में नकार दिया था। लेकिन उसके बाद भी हमने राज्य में जातिगत जनगणना कराई। इसके साथ पूरे देश में बिहार जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी करने वाला पहला राज्य बन गया है।